PRASHANT KISHOR

कैसे डेटा ने बदल दी भारतीय राजनीति

प्रशांत किशोर की यात्रा ने एक दिलचस्प मोड़ लिया जब उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। यहां उन्हें यह अहसास हुआ कि कैसे प्रमाण आधारित दृष्टिकोण वास्तविक परिवर्तन ला सकते हैं, खासकर तब जब बात गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर की हो। यही वह समय था जब किशोर ने डेटा को सिर्फ एक साधन नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में देखा, जो न केवल समस्याओं को पहचानने में मदद करता है, बल्कि उन पर सही रणनीति के तहत कार्रवाई करने की दिशा भी तय करता है।

डेटा: समस्याओं का समाधान और परिवर्तन का मार्ग

प्रशांत किशोर ने देखा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य में बड़े पैमाने पर सुधार लाने के लिए केवल नीति निर्माण नहीं, बल्कि डेटा आधारित रणनीतियों की आवश्यकता होती है। उन्होंने यह सीखा कि किस प्रकार डेटा का उपयोग करके जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और परिणामों को बेहतर बनाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, जिन क्षेत्रों में कुपोषण का स्तर सबसे अधिक था, वहां की जानकारी एकत्रित कर प्रभावी उपाय किए गए। यह रणनीति न केवल प्रभावी थी, बल्कि इससे संसाधनों का सबसे अच्छा उपयोग भी किया गया।

किशोर ने डेटा के माध्यम से यह समझा कि हर समस्या का समाधान केवल योजनाओं में नहीं, बल्कि उन योजनाओं के सटीक क्रियान्वयन और निरंतर निगरानी में है। उन्होंने पाया कि पारंपरिक सरकारी नीतियों में जो खामियां थीं, वे अक्सर उन योजनाओं के गलत तरीके से लागू होने या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण थीं। इसने किशोर को यह एहसास दिलाया कि सरकारी नीतियों को केवल इच्छाशक्ति से नहीं, बल्कि मजबूत डेटा और योजना से लागू किया जा सकता है।

राजनीति में डेटा का प्रवेश

जब प्रशांत किशोर ने राजनीति में कदम रखा, तो उन्होंने देखा कि भारतीय चुनावी अभियान अक्सर व्यक्तित्व, बड़े-बड़े वादों और पहचान आधारित राजनीति से प्रेरित होते हैं। इन अभियानों में जमीनी स्तर पर काम करने की कोई ठोस योजना नहीं थी। किशोर ने यहाँ एक नया दृष्टिकोण अपनाया और डेटा का उपयोग कर एक ऐसे राजनीतिक मॉडल की परिकल्पना की, जिसमें न केवल वोटरों की पहचान की जाए, बल्कि उनकी समस्याओं और आवश्यकताओं को भी समझा जाए।

उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि हर चुनावी अभियान न केवल आंकड़ों पर आधारित हो, बल्कि वोटरों के व्यक्तिगत अनुभव, उनकी भावनाओं और चिंताओं को भी सही तरीके से समझा जाए। किशोर का मानना था कि डेटा और जमीनी स्तर की समझ मिलकर चुनावी अभियानों को न केवल अधिक प्रभावी बना सकती है, बल्कि उन्हें ज्यादा पारदर्शी और सटीक भी बना सकती है।

डेटा और सहानुभूति का मेल

किशोर ने इस विचारधारा को अपने चुनावी अभियानों में लागू किया, जहां हर अभियान का लक्ष्य सिर्फ बड़े वादे करना नहीं, बल्कि वास्तविक समस्याओं का समाधान करना था। यह नया दृष्टिकोण न केवल वोटरों के साथ एक सशक्त और ईमानदार संवाद स्थापित करता था, बल्कि राजनीतिक नेताओं को भी उनके वादों के लिए जवाबदेह ठहराता था। यह सिद्धांत उनके अभियानों में सफलता का मुख्य कारण बन गया, और उन्होंने यह साबित कर दिया कि डेटा को सहानुभूति के साथ मिलाकर एक वास्तविक बदलाव लाया जा सकता है।

किशोर की राजनीति में क्रांति

किशोर का यह विश्वास था कि डेटा निर्णय लेने के पूरे प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बना सकता है, जिससे वो आवाज़ें और मुद्दे भी सामने आ सकते हैं, जो आमतौर पर हाशिए पर रहते हैं। उनके अभियानों ने यह साबित किया कि राजनीति का असल उद्देश्य लोगों की सेवा करना है, न कि केवल सत्ता का खेल खेलना।

उनका मानना था कि यदि चुनावी अभियानों को सिर्फ नेताओं के व्यक्तित्व पर केंद्रित नहीं किया जाए, बल्कि उन मुद्दों पर बात की जाए जो वोटरों के जीवन को प्रभावित करते हैं, तो यह एक सशक्त और प्रभावी लोकतंत्र को जन्म देगा। उन्होंने इस सिद्धांत को लागू कर भारतीय राजनीति में एक नई परिभाषा दी, जहां हर चुनावी अभियान, हर वादा, और हर रणनीति का एक स्पष्ट उद्देश्य होता है: लोगों की सेवा करना और उन्हें उनकी वास्तविक समस्याओं के समाधान की दिशा में ले जाना।

किशोर की राजनीति में प्रवेश एक तरह से संयोग था। 2011 में जब नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अपने पुनः चुनावी अभियान की शुरुआत की, तो किशोर को टीम का हिस्सा बनने का निमंत्रण मिला। हालांकि किशोर के पास राजनीतिक अभियानों का कोई खास अनुभव नहीं था, लेकिन उनकी रणनीतिक सोच ने मोदी के करीबी सलाहकारों का ध्यान खींचा।

गुजरात के चुनावी अभियान में उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों से सीखी गई रणनीतियों का इस्तेमाल किया – डेटा विश्लेषण, हितधारकों की भागीदारी और प्रदर्शन निगरानी। इस अभियान ने किशोर को राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में स्थापित किया और उनके भविष्य के सहयोगों का मार्ग प्रशस्त किया। इस अभियान ने उन्हें यह भी दिखाया कि कैसे चुनावी अभियानों को सिर्फ वादों से नहीं, बल्कि सटीक डेटा और जमीनी जरूरतों से आकार दिया जा सकता है।