Prashant Kishor

जोश नहीं, योजना से होता है बदलाव

जब प्रशांत किशोर ने जीवन के अधिकतर वर्ष डिज़ाइन और इंजीनियरिंग में बिताए थे, तब एक अनपेक्षित यात्रा उनका इंतजार कर रही थी— सार्वजनिक स्वास्थ्य। इस यात्रा ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय विकास के क्षेत्र में प्रवेश करने का अवसर दिया और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (UN) के लिए भारत और अन्य देशों में कई परियोजनाओं पर काम किया। यह एक नई दिशा थी, जहां उन्होंने नीति निर्माण की जटिलताओं को ज़मीन पर देखा और बड़े पैमाने पर सामाजिक मुद्दों से निपटने का अनुभव प्राप्त किया।

वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सुधार की ओर

संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करते हुए, किशोर ने कई ऐसी पहलों पर काम किया जिनका उद्देश्य ग्रामीण और गरीब समुदायों तक स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छता और शिक्षा की पहुंच को बढ़ाना था। ये पहलें न केवल सरकारी अधिकारियों, बल्कि सामुदायिक नेताओं के साथ भी जुड़कर कार्य करने की आवश्यकता थी। किशोर ने यहाँ सीखा कि जमीनी स्तर पर सहभागिता और समुदायों से संवाद कितनी महत्वपूर्ण होती है।

उनका अनुभव यह था कि किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल को सफल बनाने के लिए ठोस आंकड़ों और प्रमाणों पर आधारित निर्णय लेना आवश्यक होता है। आज के युग में हर कदम को मापने योग्य परिणामों के आधार पर तौला जाता है। किशोर ने यह समझा कि फैसले केवल मान्यताओं पर नहीं, बल्कि ठोस डेटा और प्रमाणों पर आधारित होने चाहिए। यही दृष्टिकोण बाद में उनकी राजनीति में रणनीतिक रूप से देखा गया।

नीति निर्माण और कार्यान्वयन की असमानताएँ

प्रशांत किशोर ने इस चरण में सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा यह ली कि नीति का डिज़ाइन और उसका कार्यान्वयन में बहुत बड़ा अंतर होता है। सरकारों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली नीतियाँ अक्सर आकर्षक दिखती थीं, लेकिन उनका कार्यान्वयन बेहद कमजोर होता था, और जब जिम्मेदारी का अभाव होता, तो वे नीतियाँ प्रभावी नहीं हो पातीं। किशोर ने यहां राजनीति और प्रशासन की समानताएँ समझीं। दोनों क्षेत्रों में सफलता के लिए दिशा, रणनीति, और ठीक से नियोजित योजना की आवश्यकता होती है।

जमीनी आंदोलनों का पहला अनुभव

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य परियोजनाओं पर काम करते हुए, किशोर को ग्रामीण इलाकों में कई बार जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों से बातचीत की, जो सीमित संसाधनों के बावजूद भी अपने जीवन में संघर्ष करते हुए, हिम्मत और संघर्ष की मिसाल पेश करते थे। इस अनुभव ने किशोर के जीवन पर गहरा असर डाला, क्योंकि उन्होंने देखा कि कैसे आम लोग मुश्किल परिस्थितियों में भी सामूहिक संघर्ष के साथ खड़े रहते हैं।

इन इंटरएक्शन से किशोर ने जमीनी आंदोलनों की कार्यप्रणाली को समझा। उन्हें यह एहसास हुआ कि जमीनी स्तर के नेता, भले ही शिक्षा की कमी या किसी औपचारिक प्रशिक्षण से वंचित होते थे, फिर भी वे समुदाय को एकजुट कर बड़े सामाजिक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाते थे। यह वह समय था, जब किशोर ने जमीनी स्तर की राजनीति और नेतृत्व की पहली बार गहरी समझ प्राप्त की।

पारदर्शी और प्रभावी पारंपरिक सक्रियता की सीमाएँ

हालांकि, किशोर ने इस यात्रा के दौरान यह भी देखा कि पुरानी और पारंपरिक सक्रियता अपनी जगह पर अच्छी होती थी, लेकिन सिर्फ जोश और प्रतिबद्धता के बल पर स्थायी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता था। उन्होंने यह सीखा कि बदलाव के लिए एक व्यवस्थित, सुव्यवस्थित और रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसमें जमीनी ऊर्जा को ठीक से संरेखित करने के साथ-साथ संसाधनों का उचित प्रबंधन और विस्तृत योजना बनाना आवश्यक होता है।