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डाटा वाली पार्टी बनाम लालटेन वाली पार्टी

डाटा वाली पार्टी बनाम लालटेन वाली पार्टी

प्रशांत किशोर ने एक बार राजद के सक्रिय सदस्यों का डाटा जन सुराज पार्टी के हाथ लगने की बात पर व्यंग्यात्मक अंदाज में सवाल किया, “राजद कब से डाटा वाली पार्टी बन गई? वो तो लालटेन वाली पार्टी है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह पढ़ाई-लिखाई, डाटा क्या होता है, इसे कैसे स्टोर किया जाता है, ये सब राजद को कैसे पता होगा! राजद का असल काम तो लालटेन, दंगा, फसाद, और अपहरण-अपराध को शह देना है। पढ़ाई-लिखाई और डाटा से उनका कोई लेना-देना नहीं है।”

बिहार की राजनीति में ‘डाटा वाली पार्टी बनाम लालटेन वाली पार्टी’ का संघर्ष नए बदलाव और पुरानी परंपराओं के बीच की खाई को उजागर करता है

जनसेवा या सत्ता का भय?

बिहार की राजनीति में हर चुनाव के साथ कुछ न कुछ नया देखने को मिलता है। बिहार के सांसद का बयान जिसमें उन्होंने हराने के लिए आक्रामकता की धमकी दी, इसे बिहार की राजनीति का एक और बुरा अध्याय बना दिया है। ऐसे समय में यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि एक सांसद का काम जनता की समस्याओं को हल करना और उनकी आवाज बनना होता है, न कि धमकी देकर डर का माहौल बनाना। इससे उनकी छवि एक जनसेवक की जगह, एक सत्ताधारी के रूप में बनती है।

बिहार को सच्चे विकल्प की तलाश

प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी, जन सुराज, एक नई शुरुआत की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि जनता को अब एक सच्चे विकल्प की जरूरत है जो उनके मूलभूत मुद्दों पर काम कर सके। उन्होंने लालू प्रसाद यादव और भाजपा के बीच भय की राजनीति पर निशाना साधते हुए कहा कि लंबे समय से बिहार की जनता को सुधार का सपना दिखाया गया, लेकिन उनके जीवन में ठोस बदलाव नहीं आया है। ऐसे में जन सुराज एक नई उम्मीद बनकर उभर रहा है।

लालटेन की लौ मद्धम

राजद में असंतोष के संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। खबरें आ रही हैं कि राजद के लाखों कार्यकर्ताओं का डाटा गायब होने की बात है, जिससे यह प्रतीत होता है कि कार्यकर्ता खुद नए विकल्प की ओर रुख कर रहे हैं। तेजस्वी यादव पर भी रोजगार देने के झूठे दावों का आरोप लगा है, और जनता से उनके परिवार के पुराने शासन की शर्मनाक घटनाओं पर नजर डालने की अपील की जा रही है।

प्रशांत किशोर ने इस तरह से राजद की परंपरागत राजनीति और उनके तौर-तरीकों पर तंज कसा, जो जन सुराज के विचारों से पूरी तरह विपरीत है।

क्या जन सुराज लिखेगा नया अध्याय?

इस चुनाव में भाजपा और राजद दोनों ही पार्टी अपने-अपने समर्थकों को लुभाने में जुटी हैं, लेकिन जनता अब सतर्क हो गई है। अगले विधानसभा चुनाव में जनता के सामने सवाल रहेगा कि क्या वे सच में एक जनोन्मुखी सरकार चाहते हैं या पुरानी सियासत के तौर-तरीकों को दोहराना चाहते हैं। जन सुराज का यह दावा है कि वे इस सड़ी-गली व्यवस्था का अंत करने के लिए हैं, और अगर जनता बदलाव को अपनाती है तो यह बिहार की राजनीति का नया अध्याय बन सकता है।

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