बिहार की राजनीति हमेशा से ही देश में चर्चित रही है। यहाँ का हर चुनाव केवल एक विधानसभा सीट का चुनाव नहीं होता, बल्कि पूरे प्रदेश के राजनीतिक भविष्य का आईना माना जाता है। इसी राजनीति की धारा में भागलपुर जिले की बिहपुर विधानसभा सीट भी एक बेहद अहम जगह रखती है। गंगा और कोसी के बीच बसा यह इलाका न सिर्फ़ भूगोल और बाढ़ जैसी प्राकृतिक समस्याओं से जूझता रहा है, बल्कि यहाँ की राजनीति भी उतनी ही जटिल और बहुरंगी रही है। बिहपुर की पहचान हमेशा करीबी चुनावी मुकाबलों, जातीय समीकरणों और बार-बार होने वाले राजनीतिक बदलावों से जुड़ी रही है। यही कारण है कि 2025 का विधानसभा चुनाव यहाँ और भी दिलचस्प हो गया है।
बिहपुर की राजनीतिक यात्रा पर अगर गौर करें तो यहाँ किसी भी दल को स्थायी सफलता नहीं मिली है। जनता हर पाँच साल में अपने प्रतिनिधि को कसौटी पर कसती है और उसी आधार पर नया फैसला देती है। यह क्षेत्र कभी भाजपा को, कभी राजद को और कभी जदयू या कांग्रेस को समर्थन देकर यह साबित करता रहा है कि बिहपुर का वोटर बेहद सजग और समझदार है। यहाँ चुनाव केवल पार्टी का नहीं बल्कि प्रत्याशी की छवि, जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों का भी चुनाव होता है।
जनसांख्यिकीय तस्वीर देखें तो बिहपुर विधानसभा में मंडल समुदाय का सबसे बड़ा प्रभाव है। मंडल मतदाताओं की संख्या लगभग 15.8 प्रतिशत है, जो किसी भी उम्मीदवार के लिए जीत का दरवाज़ा खोलने में अहम भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम मतदाता भी लगभग 12.6 प्रतिशत हैं और वे भी चुनावी परिणाम पर निर्णायक असर डालते हैं। यादव मतदाता, जो राजद का परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं, यहाँ लगभग 13 प्रतिशत के आसपास हैं। अनुसूचित जाति और महादलित मतदाताओं की हिस्सेदारी करीब 18 से 20 प्रतिशत तक है, जो अलग-अलग दलों में बंट जाते हैं। सवर्ण मतदाता लगभग 15 प्रतिशत हैं, जिनमें ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ शामिल हैं। इनके अलावा अति पिछड़ा वर्ग जैसे नाई, तेली, लोहार, कोइरी, कुर्मी आदि की आबादी भी लगभग 16 प्रतिशत है। इस तरह बिहपुर विधानसभा का जनसांख्यिकीय ढाँचा ऐसा है कि कोई भी दल या प्रत्याशी केवल एक जाति या समुदाय पर भरोसा करके जीत हासिल नहीं कर सकता। यहाँ सफलता के लिए बहुजातीय समर्थन ज़रूरी है।
2010 से अब तक के चुनावी इतिहास को देखें तो तस्वीर काफी रोचक रही है। 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कुमार शैलेन्द्र ने 41.06 प्रतिशत वोट पाकर राजद के शैलेश कुमार उर्फ़ बूलो मंडल को मामूली अंतर से हराया था। राजद को उस समय 40.66 प्रतिशत वोट मिले थे। यह चुनाव इतना करीबी था कि दोनों उम्मीदवारों के बीच केवल चार सौ से पाँच सौ वोटों का अंतर था। इससे यह साफ हुआ कि बिहपुर में जनता हर छोटे-बड़े मुद्दे पर अपनी राय बदलने में देर नहीं करती।
2015 का चुनाव बिहार की राजनीति के लिए एक निर्णायक मोड़ था। उस समय महागठबंधन की लहर पूरे प्रदेश में चली और इसका असर बिहपुर पर भी दिखा। राजद की वर्षारानी ने 48.39 प्रतिशत वोट पाकर भाजपा के कुमार शैलेन्द्र को पराजित कर दिया। भाजपा को इस बार केवल 39.46 प्रतिशत वोट मिले। यह जीत राजद के लिए इसलिए अहम थी क्योंकि इसने यह दिखा दिया कि अगर विपक्ष एकजुट हो जाए तो भाजपा को आसानी से हराया जा सकता है।
2020 में परिदृश्य फिर बदल गया। इस बार भाजपा ने फिर से अपनी पकड़ मजबूत की। भाजपा के कुमार शैलेन्द्र ने 48.5 प्रतिशत वोट हासिल कर राजद के शैलेश कुमार को हरा दिया, जिन्हें 44.5 प्रतिशत वोट मिले। बहुजन समाज पार्टी को इस चुनाव में 2.4 प्रतिशत वोट मिले और नोटा को 1.81 प्रतिशत वोट मिले। भाजपा की इस जीत ने यह साबित किया कि बिहपुर विधानसभा की जनता स्थायी रूप से किसी दल के साथ नहीं खड़ी होती बल्कि हर बार प्रदर्शन और परिस्थितियों के हिसाब से निर्णय लेती है।
अगर लोकसभा चुनावों की ओर नज़र डालें तो यहाँ और भी उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। 2009 में भाजपा को यहाँ 40.03 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि राजद को केवल 19.29 प्रतिशत पर संतोष करना पड़ा। 2014 में मोदी लहर के बावजूद भागलपुर सीट से राजद के शैलेश कुमार उर्फ़ बूलो मंडल ने 45.39 प्रतिशत वोट हासिल कर भाजपा के शाहनवाज हुसैन को हरा दिया। भाजपा को यहाँ केवल 36.63 प्रतिशत वोट मिले। 2019 में जदयू ने यहाँ शानदार प्रदर्शन किया और अजय कुमार मंडल ने 54.22 प्रतिशत वोट पाकर राजद को 37.78 प्रतिशत पर रोक दिया। 2024 में जदयू के अजय कुमार मंडल ने 46.52 प्रतिशत वोट पाकर कांग्रेस के अजीत शर्मा को मात दी, जिन्हें 42.97 प्रतिशत वोट मिले। इन आंकड़ों से साफ होता है कि बिहपुर और आसपास के इलाकों का मतदाता हर बार अलग-अलग विकल्प चुनता है और किसी भी दल को स्थायी समर्थन नहीं देता।
2025 का विधानसभा चुनाव इस लिहाज़ से और भी दिलचस्प होने वाला है क्योंकि इस बार मैदान में केवल भाजपा और राजद ही नहीं बल्कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी है। जन सुराज पिछले कुछ वर्षों से बिहार की राजनीति में एक नया प्रयोग है। प्रशांत किशोर लगातार पदयात्रा और जनसंवाद के माध्यम से बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को जनता के बीच ले गए हैं। उनकी रणनीति यह है कि बिहार से पलायन की समस्या खत्म की जाए और स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया जाए। खासकर युवाओं में उनकी अपील लगातार बढ़ रही है। यदि जन सुराज पार्टी बिहपुर से कोई मजबूत उम्मीदवार उतारती है और उसे 5 से 10 प्रतिशत वोट भी मिल जाते हैं तो यह सीधे तौर पर राजद को नुकसान पहुँचा सकता है और अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को फायदा पहुँचा सकता है।
राजद की ताक़त यादव और मुस्लिम वोटरों पर टिकी रहती है। यदि ये दोनों समुदाय पूरी तरह उनके साथ रहते हैं तो राजद किसी भी परिस्थिति में कड़ी चुनौती दे सकती है। लेकिन समस्या तब आती है जब मंडल, दलित और महादलित वोट बिखर जाते हैं। भाजपा अपने पक्ष में सवर्ण वोटों को लगभग स्थायी बना चुकी है और शहरी वोटरों के बीच भी उनकी पकड़ मजबूत है। भाजपा की सबसे बड़ी ताक़त नरेंद्र मोदी का चेहरा और केंद्र सरकार की योजनाओं का असर है, जबकि राजद के पास संगठन और परंपरागत वोट बैंक का सहारा है।
जदयू की स्थिति बिहपुर विधानसभा में हमेशा से कमजोर रही है। हालांकि लोकसभा स्तर पर उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन विधानसभा चुनावों में उनका वोट शेयर कम रहा है। कांग्रेस की हालत भी कुछ ऐसी ही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन विधानसभा स्तर पर उनके पास संगठन और कार्यकर्ताओं की कमी है। यही वजह है कि वे बिहपुर में किसी गठबंधन का हिस्सा बनकर ही असर डाल सकते हैं।
बिहपुर विधानसभा के मतदाता हर बार नया प्रयोग करते रहे हैं। 2010 में भाजपा, 2015 में राजद और 2020 में फिर भाजपा की जीत इस बात का सबूत है। इसलिए 2025 में भी यह तय नहीं है कि कौन जीतेगा। परंतु यदि वर्तमान समीकरणों को देखा जाए तो भाजपा को थोड़ी बढ़त मिलती हुई नज़र आती है। उनकी पिछली जीत और सवर्ण, शहरी तथा केंद्र सरकार की नीतियों का असर उनके पक्ष में जाता है। राजद के लिए चुनौती यह है कि उन्हें विपक्षी वोटों को एकजुट रखना होगा और जन सुराज जैसी नई ताक़त को अपने वोट बैंक में सेंध लगाने से रोकना होगा।
आने वाले चुनावों में जनता किन मुद्दों पर मतदान करेगी यह भी एक बड़ा सवाल है। बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दे इस बार ज्यादा असर डाल सकते हैं क्योंकि युवाओं की संख्या मतदाताओं में लगातार बढ़ रही है। बाढ़ और पलायन जैसी पुरानी समस्याएँ भी अहम रहेंगी। प्रशांत किशोर लगातार यही संदेश दे रहे हैं कि अगर उनकी सरकार आई तो बिहार का कोई भी मज़दूर रोजगार की तलाश में गुजरात या पंजाब नहीं जाएगा। यह बात बिहपुर जैसे इलाकों में असर डाल सकती है क्योंकि यहाँ से बड़ी संख्या में लोग हर साल पलायन करते हैं।









