बिहार में कुल मतदाता संख्या लगातार बढ़ रही है और 2025–26 विधानसभा चुनाव में लगभग 4.50 करोड़ वोटों के पोल होने की संभावना है। 2020 में यह संख्या 3.7 करोड़ से ऊपर थी और 2015 में करीब 3.8 करोड़ वोट पड़े थे। यानी पांच–छह सालों में लगभग 70–80 लाख नए मतदाता जुड़े हैं।
अब अगर RJD और NDA दोनों ही मिलकर अपनी सर्वोत्तम स्थिति में भी केवल 1.30–1.30 करोड़ वोट ला पाते हैं, तो उनके खाते में कुल 2.60 करोड़ वोट होंगे। इस स्थिति में लगभग 1.90 करोड़ वोट शेष रह जाते हैं। यही वह वोट है जिस पर चुनाव की दिशा तय होगी।
यदि जन सुराज आंदोलन, जो पहले से ही 1 करोड़ से अधिक सदस्यता का दावा कर रहा है, इस शेष वोट का 90 प्रतिशत तक भी हासिल कर लेता है, तो इसका मतलब होगा कि उन्हें 1.70 करोड़ से अधिक वोट सीधे मिल सकते हैं। यह आंकड़ा किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिलाने के लिए पर्याप्त है।
बिहार में लगभग 78,000 मतदान केंद्र (polling booths) हैं और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में औसतन 320 बूथ आते हैं। अगर जन सुराज हर बूथ पर 3–4 कार्यकर्ताओं की सक्रिय तैनाती कर देता है, तो जमीनी स्तर पर मतदाता को लाने, मतदान दिन प्रबंधन करने और booth capturing जैसे पुराने आरोपों से बचते हुए भी मतदान प्रतिशत को अपने पक्ष में मोड़ा जा सकता है।
इस रणनीति से अगर जन सुराज को प्रति सीट औसतन 50–55 हजार वोट मिलते हैं तो वह आसानी से 160 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कर सकता है, क्योंकि बिहार में कई सीटें 35–40 हजार के अंतर से भी जीती जाती हैं।
यादव और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति पर आश्रित RJD को यहां सबसे बड़ी चुनौती मिलेगी। मुस्लिम मतदाता पारंपरिक तौर पर RJD–Congress को वोट देते रहे हैं, लेकिन PK की साफ–सुथरी छवि, बेहतर संगठन और booth-level workers की मौजूदगी उन्हें जन सुराज की ओर खींच सकती है। AIMIM ने 2020 में सीमांचल में पांच सीटें जीती थीं, लेकिन अपने ही चार विधायक गंवा दिए। इस बार AIMIM का प्रभाव और भी कम होने की संभावना है। ऐसे में मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा PK के पक्ष में शिफ्ट हो सकता है।









