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PK की चुनौती: विश्लेषण उन सीटों का जहाँ वह RJD–JDU–BJP को कड़ी टक्कर दे सकते हैं

PK की चुनौती: विश्लेषण उन सीटों का जहाँ वह RJD–JDU–BJP को कड़ी टक्कर दे सकते हैं

बिहार में राजनीति का नया चेहरा बनकर उभर रहे प्रशांत किशोर (PK) के जन सुराज आंदोलन ने विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में ताकतवर पकड़ बनाई है. नीचे विस्तार से बताया गया है कि किन सीटों पर PK को सबसे मजबूत मौका मिलता दिख रहा है—उनका चुनावी इतिहास, स्थानीय मुद्दे और 2020 के चुनाव के नतीजों का आधार:

सीमांचल बेल्ट: कटिहार, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया

विशेष बातें

  • कटिहार (प्राणपुर, बलरामपुर, मनीहार): पलायन और बेरोज़गारी प्रमुख मुद्दे, युवा वर्ग और EBC आबादी PK की कहानी से जुड़ती है.
  • किशनगंज (कोचाधामन, ठाकुरगंज): मुस्लिम-बहुल क्षेत्र; AIMIM और RJD दोनों से वोट काटने की संभावनाएं.
  • अररिया (जोकीहाट, नरपतगंज): RJD का MY समीकरण यहां पर अब तक मजबूत रहा, लेकिन अगर युवाओं और महिलाओं में PK का प्रभाव बढ़ता है तो बदलाव संभव है.
  • पूर्णिया (बैसी, अमौर): यहाँ PK की ground connectivity अच्छी है और मुस्लिम + OBC वोटर उसकी रणनीति से प्रभावित हो रहे हैं.

चुनाबी संदर्भ

2020 में RJD सबसे बड़ी पार्टी थी (75 सीटें, 23% वोटशेयर)

। Seemanchal में वोट शेयर पर असर PK की लंबी पदयात्रा और स्थानीय मुद्दों के भाव से संभावित है.

मगध क्षेत्र: सासाराम, कैमूर, गया, शेरघाटी

यहाँ का मतदान सामाजिक न्याय एजेंडा (मंडल) पर आधारित रहा है।

सासाराम और कैमूर: दलित + EBC वोटर इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. PK का EBC उम्मीदवारों को आगे करना इसे हिलाने का मौका हो सकता है.

गया और शेरघाटी: धार्मिक आधारों पर बनी राजनीति से हटकर युवाओं और माताओं के मुद्दे (रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य) PK ले कर आ सकते हैं.

दरभंगा और मिथिलांचल: बहादुरपुर, झंझारपुर

मिथिलांचल में युवा बेरोज़गारी, पलायन और शिक्षा की कमी बड़ी समस्या बनी हुई है। PK के “20 लाख रोज़गार” जैसे वादे सीधे युवा मतदाताओं को आकर्षित करते हैं। यहाँ PK की चुनौती RJD और JDU जैसी पार्टियों के पुराने समीकरण को तोड़ने की होगी.

सारण, सिवान और आसपास

परंपरागत रूप से RJD और JDU का गढ़, लेकिन PK का बूथ मॉडल—हर बूथ पर दो कार्यकर्ता सक्रिय—यहां परिवर्तन ला सकता है। लगातार जनसंवाद और स्थानीय जुड़ाव उन्हें आत्मनिर्भर बना रहा है।

पटना: कुम्हरार और फुलवारी शरीफ

कुम्हरार (शहरी, युवा–शिक्षित मतदाता): PK का डेटा-आधारित, विकास-केंद्रित एजेंडा यहाँ कारगर हो सकता है.

फुलवारी शरीफ (मुस्लिम-बहुल): RJD के MY समीकरण को चुनौती, खासकर जब मुस्लिम वोटर सशक्त मुद्दों से जुड़ता है.

बांका, भागलपुर, मुंगेर

यहां रोजगार, बाढ़, शिक्षा और विकास की चुनौतियाँ विकराल हैं। PK का विकास, रोज़गार और स्वास्थ्य एजेंडा यहां RJD या BJP को चुनौती दे सकता है, खासकर युवाओं और EBC–दलित वोटरों के बीच.

नवादा, सुपौल, सहरसा (कोसी बेल्ट)

नवादा: OBC + दलित वोट बैंक महत्वपूर्ण. PK की ऊबती जातीय राजनीति की ओर एक नया विकल्प पेश कर सकती है.

सुपौल–सहरसा: बाढ़, पलायन और कृषि संकट की वजह से जन सुराज के स्थानीय उद्योग + शिक्षा + इंफ्रास्ट्रक्चर पर संदेश गहरा असर डाल सकता है.

डेटा की बात करें (2020 चुनाव संदर्भ)

NDA ने 125 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया, जबकि महागठबंधन (RJD+ कांग्रेस) को 110 सीटों पर सफलता मिली

2020 में करीब 20% सीटें कमजोर मत अंतर (<2.5%) से जीती गईं, जिससे PK जैसे प्रतिद्वंद्वी के लिए रनिंग चांस बनता है

सीधा मुकाबला: PK ने कहा है कि आगामी चुनाव NDA बनाम जन सुराज का है, और RJD पीछे छूट जाएगा

इन सभी सीटों पर PK की सबसे बड़ी चुनौती और ताक़त यह है कि वे जाति-केंद्रित राजनीति से हटकर विकास और मुद्दा-आधारित राजनीति पेश कर रहे हैं। उनकी बूथ-टू-बूथ रणनीति, स्थानीय जुड़ाव, और युवा–EBC–महिला–मुस्लिम–शहरी मतदाताओं के लिए सशक्त एजेंडा उन्हें पारंपरिक दलों के सामने कड़ी चुनौती देती है।
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by Ranjana Jha (Author), Sylvan Jha (Author)

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