उत्तर बिहार का नाम आते ही दिमाग़ में कई तस्वीरें उभरती हैं—हरियाली से भरे खेत, गंडक और कोसी की नदियाँ, बाढ़ और पलायन की कहानियाँ, और गांव से बाहर निकलकर रोज़गार की तलाश में गए लाखों नौजवान। यह इलाका सदियों से मेहनतकश लोगों का गढ़ रहा है, लेकिन किस्मत का ऐसा फेर कि यहां के युवाओं को अपनी ऊर्जा और प्रतिभा का इस्तेमाल अपने गांव–शहर में नहीं, बल्कि दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र या विदेशों की ज़मीन पर करना पड़ता है।
इन्हीं युवाओं की एक खास सोच है जब वे जन सुराज जैसे आंदोलन की ओर देखते हैं। उनके लिए राजनीति केवल सत्ता परिवर्तन का खेल नहीं है, बल्कि घर लौटने की संभावना है। यह सोच गहराई से समझने की ज़रूरत है कि उत्तर बिहार के युवा प्रवासी दरअसल क्या चाहते हैं, उनकी उम्मीदें क्या हैं, और वे जन सुराज को किस तरह से देखते हैं।
प्रवासी युवा: एक पीढ़ी की तस्वीर
उत्तर बिहार का शायद ही कोई गांव होगा जहां से दर्जनों युवक बाहर काम करने न गए हों। कोई दिल्ली में रिक्शा चलाता है, कोई पंजाब के खेतों में मजदूरी करता है, कोई मुंबई के होटल में वेटर है, तो कोई गुजरात की फैक्ट्रियों में काम करता है। कुछ पढ़े-लिखे युवाओं ने मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी पाई है, लेकिन उनका प्रतिशत बहुत कम है।
इन युवाओं की रोज़मर्रा की ज़िंदगी आसान नहीं होती। सुबह–शाम पसीना बहाकर वे परिवार चलाते हैं और गांव में पैसा भेजते हैं। गांव में उनके बूढ़े मां-बाप, पत्नी और बच्चे इंतज़ार करते रहते हैं। त्योहारों पर ही सही, साल में एक-दो बार जब ये युवा घर लौटते हैं, तो सबसे बड़ा सवाल यही होता है—”कब तक बाहर रहना पड़ेगा?”
गांव बनाम शहर: अनुभव का अंतर
जो युवा उत्तर बिहार से बाहर जाते हैं, वे गांव और शहर के बीच का गहरा फर्क समझते हैं।
- शिक्षा का फर्क: दिल्ली या मुंबई के स्कूलों की तुलना में गांव के सरकारी स्कूल बहुत पिछड़े हुए हैं। यही वजह है कि पढ़े-लिखे प्रवासी युवा चाहते हैं कि उनके गांव में भी अच्छे स्कूल हों।
- स्वास्थ्य का संकट: गांव में बीमार पड़ने का मतलब है नज़दीकी कस्बे या ज़िले के अस्पताल तक भागना। जबकि शहरों में अस्पताल, दवाइयाँ और सुविधाएँ तुरंत मिल जाती हैं।
- रोज़गार का सवाल: सबसे बड़ा कारण यही है कि गांव में नौकरी नहीं है। खेती पर निर्भर रहना मुश्किल है, और इंडस्ट्री की कोई व्यवस्था नहीं।
युवा जब इन दोनों दुनिया की तुलना करते हैं, तो उन्हें लगता है कि बिहार में भी यह सब संभव है। फर्क केवल इच्छाशक्ति और नीतियों का है।
बदलाव की चाह और निराशा का इतिहास
बिहार की राजनीति हमेशा से “बदलाव” के नारे पर चलती रही है।
90 के दशक में लालू प्रसाद यादव को इसलिए जिताया गया कि वे गरीब–गुरबा की आवाज़ उठाएंगे।
फिर जब निराशा हुई, तो नीतीश कुमार को “सुशासन बाबू” कहकर मौका मिला। शुरुआत में थोड़ी उम्मीद भी जगी, लेकिन बाद में वही ढर्रा।
इसके बाद लोगों ने राष्ट्रीय विकल्प के रूप में भाजपा को अपनाया और 2014–2019 में पूरा समर्थन दिया।
युवा प्रवासियों की नज़र में यह सिलसिला बार-बार दोहराया गया है—उम्मीद, निराशा, और फिर नया विकल्प। यही वजह है कि वे आज भी सतर्क हैं।
जन सुराज: एक अलग उम्मीद?
जब प्रवासी युवा जन सुराज की बात करते हैं, तो वे इसे किसी “नई पार्टी” की तरह नहीं देखते। उनके लिए यह एक संभावित आंदोलन है जो सत्ता की राजनीति से ऊपर उठकर गांव तक पहुँचे।
उनकी सोच कुछ इस तरह है:
- क्या जन सुराज सच में शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देगा?
- क्या यह केवल नेताओं के चेहरे बदलने की राजनीति है या सिस्टम बदलने का प्रयास?
- क्या प्रवासी युवाओं को घर लौटने का अवसर मिलेगा, ताकि वे अपने गांव में ही सम्मानजनक रोज़गार कर सकें?
- इन सवालों का जवाब ही तय करेगा कि युवा इस आंदोलन पर भरोसा करेंगे या नहीं।
प्रवासी युवाओं की सबसे बड़ी चिंता
- रोज़गार: “कब तक बाहर जाकर मज़दूरी करनी पड़ेगी?” यह सवाल हर युवा के दिल में है। वे चाहते हैं कि बिहार में भी इंडस्ट्री और कंपनियाँ आएं।
- शिक्षा: वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ें।
- स्वास्थ्य: हर गांव में कम-से-कम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो अच्छी स्थिति में हो।
- सम्मान: बाहर जाकर काम करने पर उन्हें कई बार भेदभाव झेलना पड़ता है। वे चाहते हैं कि उनके राज्य की ऐसी पहचान बने कि बाहर कोई नीचा न दिखा सके।
राजनीति पर उनका दृष्टिकोण
प्रवासी युवा राजनीति को दूर से भी देखते हैं और करीब से भी। बाहर रहकर वे टीवी, सोशल मीडिया और अखबारों से राजनीति को समझते हैं। गांव लौटकर चौपालों पर चर्चा करते हैं। उनकी सोच यह है कि केवल जाति और धर्म की राजनीति से बिहार नहीं बदलेगा।
वे कहते हैं कि जिस दिन कोई पार्टी या आंदोलन रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ईमानदारी से काम करेगा, उसी दिन असली बदलाव होगा। जन सुराज के बारे में भी उनकी राय यही है—वादे से नहीं, काम से भरोसा बनेगा।
जन सुराज के लिए युवाओं का संदेश
प्रवासी युवा साफ कहते हैं कि अगर जन सुराज को सफल होना है, तो उसे तीन स्तर पर काम करना होगा:
- गांव स्तर पर: पंचायतों को मजबूत करना, गांव में छोटे उद्योग लगाना।
- ज़िला स्तर पर: शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर व्यवस्था।
- राज्य स्तर पर: बड़े निवेश, इंडस्ट्री और बेहतर प्रशासन।
घर लौटने की संभावना
प्रवासी युवाओं की सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि उन्हें घर लौटने का मौका मिले। वे चाहते हैं कि वे अपने गांव में ही रहकर सम्मानजनक नौकरी करें, बच्चों को पास ही अच्छे स्कूल में पढ़ाएं, और माता-पिता की सेवा कर सकें।
अगर जन सुराज इस दिशा में ठोस काम करता है, तो यह आंदोलन सिर्फ़ एक पार्टी नहीं रहेगा, बल्कि लाखों युवाओं के लिए घर वापसी का रास्ता बनेगा।
निष्कर्ष
उत्तर बिहार के प्रवासी युवा राजनीति को बहुत व्यावहारिक नज़रिए से देखते हैं। उनके लिए न तो केवल नारे मायने रखते हैं, न ही नेताओं के चेहरे। वे बदलाव चाहते हैं, लेकिन “वास्तविक बदलाव।” जन सुराज के सामने उनके मन में उम्मीद भी है और संदेह भी।
आख़िरकार, अगर कोई आंदोलन सच में उनके जीवन को आसान बनाता है, तो यही युवा उसकी सबसे बड़ी ताक़त बनेंगे। वरना वे एक बार फिर से कहेंगे—”बदलाव की तलाश जारी है।”









